teej puja
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तीज (Teej) पर्व 2025 – महत्व, इतिहास, पूजा विधि और विभिन्न प्रकार

तीज (Teej) : भारत और नेपाल की संस्कृति में अनेक त्यौहार ऐसे हैं जो न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। तीज पर्व उन्हीं में से एक है, जिसे विशेषकर महिला शक्ति, देवी पार्वती और भगवान शिव के प्रति समर्पण के रूप में मनाया जाता है। तीज का शाब्दिक अर्थ है “तीसरा दिन” और यह हर महीने अमावस्या और पूर्णिमा के तीसरे दिन पड़ता है। लेकिन विशेष रूप से श्रावण और भाद्रपद मास की तीज का महत्व सबसे अधिक होता है।

यह पर्व मुख्य रूप से हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। इन तीनों तीजों का उद्देश्य है — देवी पार्वती और भगवान शिव की आराधना करना, पति की दीर्घायु और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करना, तथा प्रकृति के सौंदर्य और वर्षा ऋतु का स्वागत करना।


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तीज (Teej) पर्व का धार्मिक महत्व

तीज को देवी पार्वती का व्रत माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने 108 जन्मों तक कठोर तपस्या की थी ताकि भगवान शिव को पति स्वरूप प्राप्त कर सकें। अंततः उनके तप और संकल्प से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया। इसलिए तीज को शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक भी कहा जाता है।

महिलाएँ इस दिन निर्जला व्रत (बिना अन्न और जल के) रखती हैं और पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख और परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं। अविवाहित कन्याएँ भी यह व्रत अच्छे पति की प्राप्ति के लिए करती हैं।


तीज (Teej) पर्व का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलू

तीज पर्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व वर्षा ऋतु के आगमन के साथ आता है, जब वातावरण हरियाली से भर जाता है। झूले, लोकगीत, नृत्य, मेहंदी और पारंपरिक व्यंजन इस त्यौहार की पहचान हैं।

नेपाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में तीज का उत्सव विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। गहवर (घेवर) और मेहंदी इसके प्रमुख आकर्षण होते हैं।


तीज (Teej) पर्व के प्रकार

1. हरियाली तीज (श्रावणी तीज)

  • इसे सिंधारा तीज या छोटी तीज भी कहा जाता है।
  • यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।
  • यह वह दिन है जब भगवान शिव ने देवी पार्वती के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार किया।
  • इस दिन महिलाएँ मायके जाती हैं, झूले झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं।
  • सिंदारा की परंपरा होती है जिसमें विवाहित बेटियों को उनकी माँ घर से कपड़े, चूड़ियाँ, मेहंदी, मिठाई आदि भेंट स्वरूप भेजती हैं।

2. कजरी तीज (बड़ी तीज)

  • हरियाली तीज के 15 दिन बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।
  • इसे बूढ़ी तीज या बड़ी तीज भी कहते हैं।
  • इस दिन महिलाएँ निर्जल व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करती हैं।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के बुंदी में कजरी तीज मेला लगता है।
  • इस अवसर पर कजरी गीत गाए जाते हैं, जिनमें प्रायः विरह और मिलन की भावनाएँ झलकती हैं।

3. हरतालिका तीज

  • यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।
  • इसका नाम हरित + आलिका से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “सखी द्वारा अपहरण”
  • मान्यता है कि जब हिमालय ने पार्वती जी का विवाह विष्णु जी से तय किया, तो उनकी सखियों ने पार्वती जी को अपहरण करके जंगल में ले जाकर शिवजी की आराधना करने का अवसर दिया।
  • पार्वती जी ने बालू से शिवलिंग बनाकर पूजा की और शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया।
  • इस दिन महिलाएँ निर्जला उपवास रखती हैं और पूरी रात जागरण व भजन-कीर्तन करती हैं।

तीज (Teej) पर्व की प्रमुख परंपराएँ

  1. व्रत और पूजा – विवाहित और अविवाहित महिलाएँ तीज का व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।
  2. सोलह श्रृंगार – महिलाएँ इस दिन पारंपरिक परिधान पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं, चूड़ियाँ पहनती हैं और पूरा श्रृंगार करती हैं।
  3. सिंधारा और बाया – ससुराल और मायके से कपड़े, गहने और मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है।
  4. लोकगीत और नृत्य – महिलाएँ समूह में मिलकर लोकगीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
  5. झूले और मेले – गाँव-गाँव में झूले डाले जाते हैं और मेलों का आयोजन होता है।
  6. विशेष व्यंजन – घेवर, पूरनपोली, थेकुआ, पिडुकिया जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।

विभिन्न राज्यों में तीज (Teej) पर्व

  • राजस्थान – यहाँ तीज का त्योहार विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। जयपुर में तीज माता की शोभायात्रा निकाली जाती है।
  • हरियाणा – यहाँ इसे राजकीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है। महिलाएँ मेहंदी लगाती हैं और लोकगीत गाती हैं।
  • पंजाब (तियाँ/तियाँ) – इसे “तियाँ” कहा जाता है, जिसमें गिद्धा नृत्य और गीतों का विशेष आयोजन होता है।
  • नेपाल – यहाँ तीन दिन तक तीज का उत्सव चलता है। पहला दिन “दर खाने दिन”, दूसरा दिन उपवास और तीसरा दिन ऋषि पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
  • बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश – यहाँ महिलाएँ परंपरागत भोजपुरी गीत गाती हैं और थेकुआ जैसी मिठाइयाँ बनाती हैं।

तीज (Teej) पर्व का सामाजिक महत्व

  • तीज महिलाओं को अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़ने का माध्यम है।
  • यह त्योहार महिला एकता और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक है।
  • तीज के लोकगीत और कथाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज को नैतिक शिक्षा और वैवाहिक जीवन के आदर्श प्रदान करती हैं।
  • यह पर्व प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन और सामंजस्य का संदेश भी देता है।

तीज (Teej) पर्व कब है?

साल 2025 में तीज पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि रहेगी। यह तिथि 25 अगस्त की रात से शुरू होकर 26 अगस्त को दोपहर तक रहेगी। महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं।


चौर्चन पूजा भी इसी दिन

मिथिला क्षेत्र के लिए यह दिन और भी खास होता है क्योंकि 26 अगस्त 2025 को ही चौर्चन पूजा भी मनाई जाएगी। चौर्चन पावन को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाया जाता है, जो इस बार 26 अगस्त की दोपहर 1:54 बजे से शुरू होकर 27 अगस्त शाम 3:44 बजे तक रहेगी।

इस प्रकार, 26 अगस्त का दिन मिथिला और पूरे उत्तर भारत के लिए बेहद शुभ है क्योंकि एक ओर तीज का पर्व होगा और दूसरी ओर चौर्चन पूजा भी। महिलाएँ इस दिन उपवास, श्रृंगार, पूजा और गीत-संगीत के साथ भगवान शिव-पार्वती और चंद्रदेव की आराधना करेंगी।


निष्कर्ष

तीज (Teej) पर्व केवल एक धार्मिक व्रत ही नहीं, बल्कि यह महिलाओं की आस्था, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व बताता है कि दृढ़ संकल्प और भक्ति से असंभव भी संभव हो सकता है, जैसे माता पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को प्राप्त किया।

आज भी तीज पर्व महिलाओं के जीवन में आनंद, उल्लास, सौंदर्य और भक्ति का संचार करता है। इस पर्व की परंपराएँ न केवल वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाती हैं बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को भी प्रगाढ़ करती हैं।

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